जहां चाह है वहीं पर तो राह है...रफी साहब पर ये लाइनें सटीक बैठती हैं. किसी प्रोफेशनल गुरु को चुनने की बजाय रफी साहब ने गांव के फकीर की नकल कर गाना सीखा था. महज 13 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली परफॉर्मेंस दी.
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#Throwback: 'बाबुल की दुआएं...' के लिए जीता था रफी ने नेशनल अवॉर्ड, गाना सुनकर नम हो जाएंगी आंखें
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